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Mahabharat Rap Battle: Kalyug vs Krishna | कलयुग vs कृष्णा | Mahabharat Rap Battle: कलयुग vs कृष्णा Lyrics

Mahabharat Rap Battle: Kalyug vs Krishna | कलयुग vs कृष्णा | Mahabharat Rap Battle: कलयुग vs कृष्णा Lyrics



कलयुग: 


हर अशुद्धि के लिए मैं शुद्ध होना चाहता हूँ
और काली बुद्धि का  मैं बुद्ध होना चाहता हूँ
चाहता हूँ इस सृष्टि में युद्ध चारों ओर हो
इस धरती के प्रेम से मैं क्रुद्ध होना चाहता हूँ
चाहता हूँ तोड़ देना सत्य की दीवार को
चाहता हूँ मोड़ देना प्रेम की गुहार को
चाहता हूँ इस धरा पर पाप फूले और फले
मैं चाहता हूँ इस जगत के हर हृदय में छल पले
मैं नहीं वो रावण जो आके मुझको मार दो
मैं नहीं वह कंस जिसकी बाँह तुम उखाड़ दो
पाप का में देवता हूँ मुझे पहचान लो
खेलता हूँ Mind से राज तुम ये जान लो
तुम्हारे भक्त भी मेरी पकड़ में आ गए हैं
मारना है मुझको तो,पहले इन्हें तुम मार दो
युद्ध करना चाहो तो इंसानियत की हार हो
धर्म की हो हानि अब अधर्म की पुकार हो
सब तुम्हारे भक्त जान भी अब विरोधी हो गए हैं
रब तुम्हारे संतजन कब से क्रोधी हो गए है
मैं नहीं बस में किसी राम,कृष्ण और बुद्ध के
अब करूँगा नाश हर मनुष्य के वज़ूद के
अब नहीं मैं ग़लतियाँ वैसी करुं जो कर चुका
और रावण भी वीर था जो छल से कब का मर चुका
मर दिया कंस को भी कुश्ती के खेल में 
ये कलुग है सुनो बेटा होने वाला नहीं Fail में 
कंस-रावण-दुर्योधन तुमको नहीं पहचानते थे
कैसे लड़ना ज़िद पकड़ना युद्ध में वो जानते थे
Fact को नहीं जानते थे मेरा राज़ वो नहीं जानते थे
मैं नहीं वो जो छोटी बात पर अड़ जाए
जो दिमाग से चालक ख़ोटी बात पे अड़ जाये तो
नहीं जीतता है दुनिया मैं किसी भी देश को
घसीटता में नीचता मनुष्यता के भेष को
मैंने सुना था तुम्हारा इन्हीं की देह में था वास
धर्म-कर्म,पाठ-पूजा पूरे देश का विनाश
इनकी आस्था को फिर बनाया रास्ता
और आज न दरार लू ये बनाएंगे मेरा नास्ता
आज इंसानियत पे पाप का जो वास है
समाज का हर एक Electron मेरा दास है
काटना जो चाहो पहले इनको काट दो
आज भ्रष्ट कर चूका विकाश के विज्ञान को
बचो अपने भक्तो से अब सम्भालो जान को
हो सके तो तुम बचा लो आज अपने मान को
अब नहीं मैं-रूप धरके, सज-सँवर के घूमता हूँ
अब नहीं मैं छल कपट को सर पे रख के घूमता हूँ
अब नहीं हैं निंदनीय चोरी डकैती और हत्या
हुए अभिनंदनीय झूठ वाले तथ्या
में ही हूँ कलयुग काल का में बाप हूँ
उबार न पाए कोई भी विनाश का में श्राप हूँ
विनाश का में श्राप हूँ

कृष्णा:



है माना तू है चल कपट
इस जहाँ में हर वकत
कर रहा तू नाश सबका
रो रहा में सर पकड़
जितनी थी दरिंदगी इन आंखे से थी देखि
100 गुना है बढ़ चुकी ये बात मानु में भी
सत्य को तू काट ता धार पैनी केनिची
मानता खुदको है बड़ा ये गलती है समय की
हाँ में चुप हूँ पर आँखे है खुली
गिनता पाप तेरे नज़रे तुझ पे ही गड़ी
संभल जा आज तू माफ़ तुझको है किया
सुख बांटा हर घड़ी और दुःख तेरे पिया
पर तुझको लगे मैंने कुछ नहीं किया
ये मिट्टी का शरीर मेरी ही है कल्पना
तेरी सोच में भरा लोभ का टोकरा
ईर्ष्या है मन में तेरे और मन नहीं भरा
जलन भरी है क्रोध तुझको लगता है बड़ा
अब ज्यादा नहीं चलेगा पाप का ये सिलसिला
सोच तेरी खामखा, पैसे जयादा छापता
मुझसे और मांगता, पर मुझे नहीं मानता
विष पिया विनाश का, अब लाऊँ आपदा
वक़्त आज्ञा है रूप दिखाऊँ विराट सा
तेरी कल्पना से काफी बड़ा मेरा रूप
अंधकार खत्म करूँ जैसे में धुप
वक़्त से चलेगा तू में ही तो वक़्त हूँ
तेरी नस में बेह रहा जो लाल सा वो रक्त हूँ
में सत्य हूँ, तू खुद को मानें ब्रह्मा और तू ज्ञान होना चाहता है
ज्ञान बेहता है मुझसे तू मेरा प्राण लेना चाहता है
मुझको तू चुनौती देके भगवन होना चाहता है
मुझसे टकरा के तू श्मशान जाना चाहता है 
में विष्णु हूँ में राम भी, ब्रह्मा का लूँ में स्थान भी
में कृष्णा का सुदर्शन चक्र और अर्जुन का में बाण भी
मानो तो में भगवन भी न मानो तो सैतान भी
में ही भरता जान सब में लेलेता हूँ प्राण भी
में महादेव शंकर ही हूँ और में ही हनुमान भी
बेचैनी का कारण मैं और मुझमे मिले आराम भी
में रात को शीतल चाँद बनु धुप हूँ सुबह शाम की
कलयुग देख रूप मेरा अब और मुझे ले पेहचान अभी
ये धरती घूमे बल से मेरे आँखों में सूरज जब चमके
रहता सबके भीतर मन के पीछे नहीं पैसे और धन के
में रहता कण-कण में परछाई जैसे दर्पण में
हर जीव-जंतु की धड़कन में और मुर्त्यु की तड़पन भी में
रावण को मारा मैंने और कंश के खींचे बांह
हिरण्यकशप फाड़ा मैंने रूप लेके महान
तुझको दिया मौका 1 अब बात ले मेरी मान
वर्ना रूप मेरा विराट देख के छोर देगा प्राण

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