एक था रण के बाहर
एक दूजा किले के अंदर था
एक तरफ तलवार लड़ी
एक तरफ हाथ में कंगन था
एक तरफ अभिमान लड़ा
एक तरफ लड़ी थी रजपूती
एक तरफ महाकाल खड़े
एक तरफ खड़ी थी माँ शक्ति।
इतिहास पढ़ा आंखे मुंदी
और चेन से हमसब सो गए
खिलजी मुगलों को याद रखा
बस सनातनी ही खो गए
क्या कायर थे हम लड़े नहीं
क्या निर्बल थे जो खड़े नहीं
क्या जहर घुला किताबों में
है असली सच हम पढ़े नहीं
आँखे खोल तेरे सामने सच्चाई है
खून बहा है और लाशें भी बिछाई है
सनातन जिंदा क्यों कि पुरखे कभी झुके नहीं
जौहर कि लपटें इस बात की गवाही है
तो सुनो कथा माँ पद्मिनी की
जिसने जौहर स्न्नान किया
आँख उठी जब खिलजी की
अपने शरीर को त्याग दिया
1302 खिलजी निकला
पद्मिनी को मैं पालूं
चितौड़ दुर्ग को फतेह करूँ
मेवाड़ अधीन बना लूँ
राजपूती मेरी दासी हो
कदमों में होगा केसरिया
रानी जो मेरी ना हुई
मैं नरसंहार मचा दूँ
उस टिड्डी दल ने कुच किया
और सिंह द्वार पर आ धमके
तंद्राये सिंह भी गरज उठे
फिर एकलिंग की जय गूंजे
उस कुत्ते की है क्या बिसात
जो सिंहनी के संग सोना चाहता
आज मरेंगे मारेंगे
मेवाड़ी सैनिक धधक उठे
ललकार उठी की जाकर के
मलेच्छों का सीना फाड़ो
जितने जमीन के ऊपर वो
तुम उतना ही भीतर गाड़ो
बजा युद्धघोष तलवार उठी
रावल के सैनिक टूट पड़े
घोड़े से घोड़े भीड़ गए
हाथी से हाथी उलझ पड़े
पेट के अंदर छुरा भोंका
अंतड़ियां झट से बाहर गिरी
हाथ कटा आँखे पुटी धरती भी लहूलुहान हुई
रक्तपात हुआ ऐसा की
भाड़े की सेना काँप उठी
हाथ काँपते थे थर थर
टांगो के बीच से धार बही
धरती होगी लाल सुराही
कण कण वीर बखान करे
एकलिंग रा बेटा गरज्या
खिलजी हाहाकार करे
रावल री सेना साम
म्हारी पार पड़े कोनी
तलवारा र जोरा स्यु
रजपूती कौम दबे कोनी
छल कपट रा खेल हुया
रावल न बणा लियो बन्दी
जात दिखाई खिलजी ने
शांत हुई मां रणचंडी
फरमान आया चित्तौड़ की महारानी को
दिल्ली भेजा जाए
वरना रावल शीश को धड़ से
अलग थलग कर फेंका जाए
संदेश सुना सरदारों ने
आंखों में रक्त उतर आया
गोरा की शमशीर उठी
बादल की तन गयी थी काया
बोले राणी सा आज्ञा दो
छाती पर चढ़के नाचेंगे
जितने भी बकरे आयेंगे
एक एक कर काटेंगे
दिल्ली पहुंचा दूत बोला
पद्मिनी मिलने राजी है
700 दासियाँ संग लिए
सुल्तान से मिलने आती है
उछल पड़ा सुल्तान जगह से
खुशी का ना कोई ठौर ठिकाना
महल सजादो इत्र लगाओ
मिलन की वेला आ गयी है
पर डोलों में वीर छुपे थे
किसी को ना कोई शंका थी
खिलजी की छाती पर चढ़के
फूंकनी उसकी लंका थी
मेवाड़ी वीर किले में आये
नरसंहार मचा डाला
एक अकेला दस को काटे
मौत का खेल रचा डाला
रत्न सिंह को मुक्त किया
गोरा सिंह उनकी ढाल बने
घोड़े पर रावल निकले
बादल दुश्मन का काल बने
काका और भतीजा दोनों
ऐसा रण दिखलाते थे
जिस दिशा में वो निकल पड़े
लाशों का ढेर लगाते थे
गोरा सिंह की गर्दन काट
जफर बड़ा हर्षाया था
धड़ ने जफर मोहम्मद काटा
खिलजी भी घबराया था
गढ़ में पहुंचे महाराणा
पर आंखों में आज पानी था
गोरा बादल खूब लड़े
वो खून बड़ा अभिमानी था
रजपूती माताओं ने
हंस हंस कर बेटे वारे थे
धर्म के खातिर लड़ने में
मेवाड़ का ना कोई सानी था
लाखों की सेना ले
खिलजी मेवाड़ गया था
पर्वत सा सीना ताने
परबल चित्तौड़ खड़ा था
रावल सा राणी न देखे
पदमिनी रावल देख रही
कुछ ही क्षण अब शेष बचे है
मृत्यु सर पर खेल रही
हर जन्म बनूं क्षत्राणी
हर जन्म रावल सा आप मिले
हर जन्म मिले मेवाड़ धरा
हर जन्म सनातन राग मिले
स्वाभिमान ये अमर रहेगा
अमर रहेगी ठकुराई
दाग लगे ना दामन पर
आज्ञा जौहर की आज मिलें
काजल घाल्यो आँखों मैं
सिन्दूर माँग में सोहवे हो
दुल्हन सी आज सजी राणीयां
अम्बर धीरज खोवे हो
कुछ र हाथा स्यु ब्याव रा
चूड़ा भी ना उत्तरया हा
कुछ री गोदी में नानडीयो
सुबक सुबक के रोवे हो
ठाकुर ठकुरानी पाषाणी
सीमा लांघ रहे थे
एक दूसरे से मरने की
आज्ञा मांग रहे थे
तो सज गयी अग्निकुंड
सजी है 16 हजार रानी
आंखों में कोई खौफ नही
बेखौफ चली मतवाली
रण में रणबांकुरे निकले
लिखने नई कहानी
तभी हवाएं लगी गूंजने
जय जय मात भवानी
1 Comments
Naveen sir ❤️
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