सारा जीवन श्रापित-श्रापित, हर रिश्ता बेनाम कहो,
मुझको ही छलने के खातिर मुरली वाले श्याम कहो,
तो किसे लिखूं मैं प्रेम की पाती,
किसे लिखूं मैं प्रेम की पाती,
कैसे-कैसे इंसान हुए,
अरे! रणभूमि में छल करते हो, तुम कैसे भगवान हुए !
माँ को कर्ण लिखता है...
कि मन कहता है, मन करता है, कुछ तो माँ के नाम लिखूं ,
एक मेरी जननी को लिख दूँ, एक धरती के नाम लिखूं,
प्रश्न बड़ा है मौन खड़ा - धरती संताप नहीं देती,
और धरती मेरी माँ होती तो, मुझको श्राप नहीं देती
तो जननी माँ को वचन दिया है, जननी माँ को वचन दिया है,
पांडव का काल नहीं हूँ मैं,
अरे! जो बेटा गंगा में छोड़े, उस कुंती का लाल नहीं हूँ मैं
तो क्या लिखना इन्हें प्रेम की पाती, क्या लिखना इन्हें प्रेम की पाती,
जो मेरी ना पहचान हुए,
अरे! रणभूमि में छल करते हो,
तुम कैसे भगवान हुए ?
पिता सूर्य को कर्ण कहता है...
कि सारे जग का तम हरते, बेटे का तम ना हर पाए
कि सारे जग का तम हरते, बेटे का तम ना हर पाए
इंद्र ने विषम से कपट किये, बस तुम ही सम ना कर पाए
अर्जुन की सौगंध की खातिर, बादल ओट छुपे थे तुम
और श्री कृष्ण के एक इशारे, कुछ पल अधिक रुके थे तुम
तो पार्थ पराजित हुआ जो मुझसे, तुम को रास नहीं आया
देख के मेरे रण-कौशल को, कोई भी पास नहीं आया
दो पल जो तुम रुक जाते तो, दो पल जो तुम रुक जाते तो,
अपना शौर्य दिखा देता
मुरली वाले के सम्मुख, अर्जुन का शीश गिरा देता
मुरली वाले के सम्मुख, अर्जुन का शीश गिरा देता
बेटे का जीवन हरते हो, बेटे का जीवन हरते हो,
तुम कैसे दिनमान हुए !
रणभूमि में छल करते हो, तुम कैसे भगवान हुए
द्रोणाचार्य को सम्भोधित करते हुए...
पक्षपात का चक्रव्यूह क्यों द्रोण नहीं तुम से टूटा ?
और सर्वश्रेष्ठ अर्जुन ही हो, बस मोह नहीं तुम से छूटा,
एकलव्य का लिया अंगूठा, मुझको सूत बताते हो,
अरे! खुद दौने में जन्म लिया और मुझको जात दिखाते हो
अपने गुरु परशुराम को सम्भोधित करते हुए...
अब धरती के विश्व विजेता परशुराम की बात सुनो,
अरे! एक झूठ पर सब कुछ छीना नियति का आघात सुनो,
तो देकर भी जो ग्यान भुलाया,
देकर भी जो ग्यान भुलाया, कैसा शिष्टाचार किया
अरे! दानवीर इस सूर्यपुत्र को तुमने जिंदा मार दिया
कि दानवीर इस सूर्यपुत्र को तुमने जिंदा मार दिया
फिर भी तुमको ही पूजा है तुम ही बस सम्मान हुए,
अरे रणभूमि में छल करते हो तुम कैसे भगवान हुए ?
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