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हिन्दी दिवस पर कविता | Poem On Hindi Diwas

Poem On Hindi Diwas


भाषा हमने सारी सीखी
पर हिंदी जैसी बात नहीं 
संस्कृत से संस्कृति मिली 
हिंदी से हिन्दुस्तान...पर 
आज मंग्रेजी चम्कर में 
हम भूल गए अपनी पहचान।

हिंदी ने ही मुझको सिरवाया
वीरो का है पाठ सुनाया
एकता का सूत्र पढ़ाकर
हिन्दुस्तान को सर्वश्रेष्ठ बनाया
हिंदी सबसे महान 
फिर क्यों? भूल रहे हम अपनी पहचान।

हिन्दी है अमिमान हमारा
इससे ही होता हिन्दुस्तान का श्रृंगार
उत्तर,दक्षिण, पूर्व पश्चिम
हर कोने तक फैला इसका प्रकाश
सजी हुई माथे पर जैसे मां पर बिन्दी 
ऐसी हीं सुशोभित है हिंदी के उपर बिंदी।

हिंदी कोई भाषा नही
यह तो एक नदी समान है
जिसकी धरा मे बहती
भारत की पहचान है।
हिंदी बोलने मे शर्म नही मुझे
यह तो मेरा अभिमान है

लम्बी चलेगी हिंदी से मेरी दोस्ती
क्योकि मुख पर मेरे हिंदी रहती
और हृदय में हिन्दुस्तान है।

हिंदी से ही अस्तित्व है मेरा
हिंदी से ही निखरता व्याक्तित्व है मेरा
मेरे सपनों,गजल,वाक्यों की ढाल है हिंदी
भारत की पहचान,
अपने आप मे बेमिशाल है हिंदी। 

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