सह ली कितनी यातना,पर
कर्तव्य सर्वोपरि रखा
त्याग, शील, संकल्प को
जिस तरह जीवित रखा..
बोलो कहाँ तक टिक सकोगे ?
यदि राम सा संघर्ष हो..
कल मुकुट जिस पर साजना था
अब उसे सबकुछ त्यागना था..
निर्णयों के द्वन्द से,
एक बालपन का सामना था..
वचन भी था थामना,
आदेश भी था मानना..
तब इस तरह सोचो स्वयं को
धर्म पर तुम रख सकोगे ?
बोलो,कहाँ तक टिक सकोगे ?
यदि राम सा संघर्ष हो..
प्रजा तो बस राम की थी
दुनिया उसे तो जप रही थी..
वचन ही था तोड़ देता
धर्म ही था छोड़ देता..
पर पीढ़िया क्या सीख लेंगी..
राम की चिंता यही थी..
हो छिन रहा एक क्षण में सबकुछ
सोचो एक क्षण..क्या करोगे ?
बोलो कहाँ तक टिक सकोगे ?
यदि राम सा संघर्ष हो..
केवट न जाने क्या किया था
सौभाग्य जो उसको मिला था
राम से ही तारने को
राम से ही लड़ गया था..
कुल वंश उसके तर रहे थे
सब राम अर्पण कर रहे थे..
जब सबकुछ हो बिखरा हुआ
तुम सहज कब तक रह सकोगे..?
बोलो कहाँ तक टिक सकोगे ?
यदि राम सा संघर्ष हो..
है याद वो घटना तुम्हे ?
जब राम थे वनवास में..
सिया थी हर ली गई
था कौन उनके साथ में..
कुटी जब सूनी पड़ी थी
दो भाई और विपदा बड़ी थी..
बोलो ऐसे मोड़ पर,
तुम धैर्य कब तक रख सकोगे...?
बोलो कहाँ तक टिक सकोगे ?
यदि राम सा संघर्ष हो..!!
वह तो स्वयं भगवान था
पर कहाँ उसमे मान था ..
किरदार भी ऐसा चुना,
जिसमें सिर्फ़ बलिदान था..
मर्यादा के प्राण थे
रघुवंश के अभिमान थे ..
श्री राम के अध्याय से
एक पृष्ठ हासिल कर सकोगे..?
बोलो कहाँ तक टिक सकोगे ?
यदि राम सा संघर्ष हो...
व्यथा इतनी ही नही है
कथा इतनी ही नही है..
कुछ शब्द उनको पूर्ण कर दे
राम वो गाथा नही है...
जब तपे संघर्ष में,
तब हुए उत्कर्ष में..
क्या तुम भी ऐसी प्रेरणा
पीढ़ियों के बन सकोगे..?
बोलो कहाँ तक तुम टिक सकोगे ?
यदि राम सा संघर्ष हो....
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