आदरणीय प्रधानाचार्यजी, सभी अध्यापकगण और मेरे प्यारे मित्रों को मेरा प्रणाम..
15 अगस्त 1947 का वह दिन जिस दिन हमने नियति से मिलने का वचन पूरा किया था एक दुर्भाग्य पूर्ण युग का अंत जब वर्षो से शोषित एक देश की आत्मा अपनी बात कहने में समर्थ हो सकी थी, एक जुवान जहाँ सच कहने में काँपती थी। इस दिन हमने जय हिन्द जय भारत का उदघोष स्वतंत्रता के साथ किया था। इसी दिन हमने जनता की सेवा और उससे भी आगे जाकर समस्त मानवता में शिव के दर्शन करके मानवता की सेवा करने की प्रतिज्ञा ली थी।
हमारे महापुरुषो ने एक विराट युग का स्पंदन गागर में सागर की तरह छलक उठा था। भारत की सीमाए एक रहस्य विस्तार से आंदोलित हो उठी थी, उनकी आँखों के सामने एक विस्मृत प्राचीन अतिहसिक युग, एक नवीन युग मूर्तिमान हो उठे थे. भारत माँ की गुलामी का प्रतिशोध अत्याचारी को अटल अन्धकार में डाल देने के लिए व्याकुल हो उठा था हमारी आजादी की कल्पना में समुद्र की तरह उदेलित होकर साकार हो उठी थी. आजादी के गर्जन में सभी भारत वासी घुल मिलकर एक भरा भारत अपनी राख से फिनिक्स की तरह आवरित होने के लिए व्याकुल हो उठा था. हमारी विराट कल्पना साकार होने के लिए मचल उठीबी एक ही प्रशन सारे भारत की आँखों में था-आखिर कव भारत आज़ाद होगा? कब उस पर केसरी ध्वज फहरायेगी, कब उस पर तिरंगा फहरायेगा।
15 अगस्त 1947 को आज से 71वर्ष पूर्व भारत अपने पार्थिव धरातल से उठकर आज के ही दिन भगवान भास्कर के चरणों का स्पर्श किया था। आज के ही दिन स्वतंत्र भारत के वियोग के बादलो पर सूर्य की किरने बिखरी थी और स्वतंत्रता का सतरंगी इन्द्रधनुष ने समस्त भारत को छा दिया था। आजाद भारत को अभी बहुत कुछ करना बाकी है। आज भी कही स्वतंत्र भारत के पीछे पड़े है। हमे उन तक पहुचना होगा, हमे उनसे विरक्त नहीं होना है। भारत के एक भी व्यक्ति की आँखे यदि इस करुण कंदन से नम होती है तो हमे उन आंशुओ को अपनी उजली में लेना है, और उनके चेहरों पर तभी सच है कि हम स्वतंत्रता के युग में है।
भारत माँ ने हमे बहुत कुछ बताया पर सब कुछ नहीं, भारत माँ ने ही हमे शक्ति दी थी जिसके बल पर आजादी का बीज धरती फोड़कर नये जीवन का प्रतीक बना है। 15 अगस्त 1947 को रात बारह बजे सभी महान पुरुषो की साधनाये फलीभूत होकर आहाद और उन्माद में भर उठी थी।
15 अगस्त के इस शुभ अवसर पर आप सभी को मेरी ओर से ढेर सारी शुभकामनाये.....
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