सूर्य तप रही धरा में भी
आक्रोश है मुगलों के
अतांक से भारत घिरा
चारो ओर है
भारत के रक्षण को
शिवाजी अब रहा नहीं उत्तर
में जिसका मचा था शोर
वो मेवाड़ी राज सिंह भी
अब धरा में नहीं
सब ओर थी हताशा कहीं
ना कोई आशा थी आया
तब छत्रपति संभाजी
महाराज जिसने लहराई
विजय पताका थी
देखकर सब में आस बनी
बनकर वो विश्वास बनी
मिलकर बने तब सब मराठा
हिंदुत्व की वो शान बनी
आज उसी से परिचित
तुमको कराता हूँ कहते थे
छावा जिसको आज उसकी
गाथा सुनाता हूँ
बालपन में ही ग्रंथ लिखा
धर्म का वो ऐसा ज्ञानी था
सोलह वर्ष में ही रण जितने
वाला समक्ष ना उसके कोई
सेनानी था
अपने ही कर रहे थे घात
और सामने शत्रु मुगल थे
अंग्रेज पुर्तगाली भी करते
प्रहार और संभाजी केवल
अकेले थे
तब साथ मिला एक वर्ण
ब्राह्मण का कलश जिसका
नाम था दोनों मिलकर लड़े
गए युद्ध हुआ तब भयंकर
विनाश था
लाखों से फिर हजार लड़े
रक्त की नदिया बह आज
थी सनातन पर जो उठी थी
उंगली आज उसको कट
जानी थी
कलश जो गुरु बना
चाणक्य सा लगता था
छत्रपति संभाजी भी रूद्र के
तांडव सा लगता था
120 लड़ाइयां लड़ी उसने
पर हारा कभी ना एक था
हर व्यूह उसका चक्रव्यूह
जिसमे फंसता औरंगजेब था
मृत्यु का उसे भय नहीं
काल का वो रूप था रण
में है लड़ता जैसे महाकाल
का वो स्वरूप था
घर में जो घात करे करता
वो उसका प्रतिकार था पर
शरण को आए शत्रु भी तो
सूयकार वो करता था
औरंगजेब के पुत्र को
बचाया जब शरण को पास
आया था अरे इस्लाम ने
जो दिया दर्द उसको उसने
भुलाया था
दिल्ली बार बार हारी और
हिंदुत्व का शोर आया था
कुछ ही दिन रहे बाकी आने
वाला स्वराज्य था
पर सनातनियों की हो विजय
यह सनातनियों को ही ना
स्वीकार था हुआ रहा फिर
ऐसा घात जिसने तोड़ा हिंदुत्व
का स्वराज था
पकड़े गए संभाजी महाराज
पर इस्लाम को ना स्वीकारा
था मृत्यु भी ऐसी चुन ली
जिससे मृत्यु भी हुआ
भयभीत था
एकता के सूत्र में जो बांधा
और युद्ध का ज्ञान ऐसा
दिया था औरंगजेब जो गया
दक्कन को वहीं मिट्टी में वो
मिल गया था
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🙏🚩जय संभाषी महाराज की जय 🙏🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩
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