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छत्रपति शिवाजी पर कविता | Chhatrapati Shivaji Maharaj par Kavita

छत्रपति शिवाजी पर कविता


बड़ा ही घोर अंधियारा
फैला मुगल तुर्को का
राज आया है

एक हारे तो दस आते है
अरब का ये जिहाद भारत
की ओर बढ़ आया है

हल्दीघाटी का शौर्य पड़
गया फीका शत्रु ऐसा
बड़ा विकट है

लड़कियों के अस्मत को
लूटते ये पशु भारत का
सर्वनाश लगता अब
निकट है

तब एक बालक था अड़ा
हुआ शत्रु के सीने पर
जाकर चढ़ा हुआ

बाजुओं को है ताल
देकर अर्जुन सा बनकर
रण मै है उतरता
मुरलीधर का छल बनकर

जंगलों का वो ताज था
पर्वतों में वो पर्वतराज था
जिसके भय से औरंगजेब कांपे वो
छत्रपति शिवाजी महाराज था

वे शत्रु अंग्रेज भी बड़े
प्रशंसक थे पूरे जग में
जिसका राज था

गर शिवाजी हमारा होता
तो ब्रह्माण्ड ये कबका
हमारा था

पर अर्जुन के बाणों को
भी भाई कर्ण ने ही
रोका था शिवाजी की
तलवार को जयसिंह ने
तोड़ा था

तब अभिमन्यु सा बनकर
आया था पुत्र संभाजी
जिसके आगे ना ही वो
जी ना ही कोई और जी

फिर जो तांडव मचाया
वो शौर्य बड़ा ही
अलौकिक था

बप्पा रावल का वंशज वो
अपने धर्म पर अडिग था

जिसने शत्रुओं के मंसूबों को
है तोड़ा वो छत्रपति शिवाजी
नाम का रोड़ा था दो चार
किलो से पूरे भारत को जोड़ा था


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