ऐसी एक आग सीने में रखें
जिसकी लौ आँखों में दिखे
जो प्रेरित करती रहे तूझे
लक्ष्य निरंतर जो ज्वलित रखे
ऐसी एक आग सीने में रखें
न मांग किसी का सहारा
न ढूंढ़ कोई ऐसा कोना अंधेरा
जहाँ मन व्यथा के गीत गुंगनाने लगे
ध्येय से दूर ले जाने लगे
न अश्रु अपने व्यर्थ बहा
होगा तूने कुछ सहा तो सहा
उत्सव का यहाँ हर कोई साथी होता है
पर रोते के साथ कौन सदा रोता है
अपना धैर्य धर अखंडित रखें
ऐसी एक आग सीने में रखें
ये स्वप्न तेरे, इनका मोल तू समझता है
फिर क्यों क्लीव-सा क्लांत सोता है
जिसे ध्यान हो अपना ध्येय,
वही जागेगा
जो होगा समर आरूढ़
वही कौन्तेय, कृष्ण को पायेगा
ये रास्ता तेरा,
तुझे ही चलना है
क्षणिक होगा विराम
और आगे बढ़ना है
अपना शौर्य शर सशक्त रखें
ऐसी एक आग सीने में रखें
ना जय का प्रहर्ष हो
ना पराजय का अमर्ष हो
हर हाल में कर्म ही हो जीवन
फल का न आकर्ष हो
चाहे मिले जीत या मिले हार
फुट किरणों-सा हर बार
अपना लय - स्वर अबाधित रखें
ऐसी एक आग सीने में रखें
जिसकी लो आँखों में दिखे ।
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