क्यों रूठ गई वसुंधरा?
है मनुष्य बता ज़रा।
क्यों पेड़ को काटा तूने ?
पहाड़ों को क्यों बाँटा तूने,
क्यों पशु-पक्षी सहमे हुए,
फैलाया सन्नाटा तूने।
कभी दूध सी बहती नदी की धार
पुकार रही है बार-बार,
दूषित करके हे मनुष्य
कर दिया हमें अब लाचार।
बदल लो अपना व्यवहार
प्रकृति पर मत करो प्रहार,
छक कर पियो नदियों का नीर
मत करो इस पर अपना अधिकार
देखो न पृथ्वी का प्यार
फूलों से लदा परा है यार
भोजन देती, पानी देती
ऑक्सीजन देती है बार-बार
कितनी करती तुमको दूलार
माँ से भी बढ़कर है ये प्यार,
तुम लाख कुकर्म करों इनपर
सेवा में रहती है तैयार।
कुछ तो सुन लो है सरकार
काफी नहीं नियम दो चार
पेड़ लाओ, नदी बचाओ
सुधार लो अब अपना व्यवहार
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Yes
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