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हल कंधे रख चला किसान। हल कंधे रख चला किसान। किसान पर कविता। Kisan Par Kavita




सिर पर पगड़ी, कमर में धोती 

हल कंधे रख चला किसान। 


बैल चल रहे आगे-आगे 

लगते बिलकुल सीधे-सादे, 

धरती माँ की किस्मत जागे

खेती करने चला किसान।

हल कंधे रख चला किसान।


सरदी, गरमी या बरसात चाहे दिन हो, 

चाहे रात, लू, आँधी या झंझावात 

मेहनत करना उसका काम। 

हल कंधे रख चला किसान।


है उसका छोटा-सा घर 

मिट्टी का, पर लगे सुघर, 

राजमहल से भी बढ़कर 

पाता उसमें वह विश्राम। 

हल कंधे रख चला किसान। 


खुश हो जीभर छेड़े तान।

हल कर रख चला किसाना।


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