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पहरुए सावधान रहना | Pehruye Savdhan Rehna By Sri Girija Kumar Mathur




आज जीत की रात

पहरुए! सावधान रहना

खुले देश के द्वार

अचल दीपक समान रहना।

 

प्रथम चरण है नये स्वर्ग का

है मंज़िल का छोर

इस जन-मंथन से उठ आई

पहली रत्न-हिलोर

अभी शेष है पूरी होना

जीवन-मुक्ता-डोर

क्यों कि नहीं मिट पाई दुख की

विगत साँवली कोर।

 

ले युग की पतवार

बने अंबुधि समान रहना

पहरुए! सावधान रहना।

 

विषम शृंखलाएँ टूटी हैं

खुली समस्त दिशाएँ

आज प्रभंजन बनकर चलतीं

युग-बंदिनी हवाएँ

प्रश्नचिह्न बन खड़ी हो गयीं

यह सिमटी सीमाएँ

आज पुराने सिंहासन की

टूट रही प्रतिमाएँ

उठता है तूफान, इंदु! तुम

दीप्तिमान रहना।

पहरुए! सावधान रहना।

 

ऊंची हुई मशाल हमारी

आगे कठिन डगर है

शत्रु हट गया, लेकिन उसकी

छायाओं का डर है

शोषण से है मृत समाज

कमज़ोर हमारा घर है

किन्तु आ रहा नई ज़िन्दगी

यह विश्वास अमर है

 

जन-गंगा में ज्वार,

लहर तुम प्रवहमान रहना

पहरुए! सावधान रहना।।


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