बचपन देखा, झरोखे के उस पार
अठखेलियों से झूलता,
चंचलता और मासूमियत के हर रंग
बिखेरता हुआ
यौवन देखा, झरोखे के बाहर
नए शारीरिक और मानसिक परिवर्तन के
साथ
मुहब्बत और मनमौजीपन को ख़्याली
उड़ान भरते हुए
प्रौढ़ावस्था देखी, झरोखे के पार
जिम्मेदारियों से भागता, जन-जीवन देखा
हर दिन संघर्षरत जीविकोपार्जन देखा
आयी वृद्धावस्था तो, झरोखे के पार
सिर्फ और सिर्फ तलाश देखी
गुजरी हुई जिंदगी की चाह देखी
और देखा, खुद की जवानी को
करीब से हाथ से फिसलते हुए….
लेकिन आज…
झरोखे के उस पार मेरी कल्पना
कुछ देखना नहीं चाहती
सिर्फ नजरों को ठंडक देना चाहती है
सुकून से, रिक्त अहसास को महसूस करना
चाहती है
एक हल्की सी शोर मुक्त आह के साथ….
2 Comments
Thanks 👍😊 dhanayaeadhs
ReplyDeletewelcome
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