मिट्टी के दिये,मिट्टी से बनकर,
पानी की आत्मसात कर,
ताप में तपकर, कच्चे से पक्के होते हैं,
जब ये मिट्टी चिकनी होती है,
बमुश्किल ही कहीं टिकी होती है,
मगर कुम्हार,
आकर और मक़सद दोनों देता है उन्हें,
मिट्टी के दिये,मिट्टी से बनकर,
मिट्टी में मिलने से पहले,
जग रोशन कर जाते हैं,
हम भी मिट्टी के,मिट्टी से बनकर,
मिट्टी में मिलने से पहले,
क्यों न रोशन करते रहें ये दुनिया,
और मिटा दें नामो-निशाँ अंधेरे का,
हर घर से और हर मन से,
बस जला कर कुछ,
मिट्टी के दिये!!!
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